लाल बहादुर शास्त्री और उनकी मां की कहानी

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लाल बहादुर शास्त्री और उनकी मां की कहानी

सुनसान रेलवे स्टेशन, दिन के आखिरी ट्रेन प्लेटफार्म से निकल चुकी है। एक बुढ़ी औरत बैठी है। पता नहीं अगले दिन अगली ट्रेन आएगी या नहीं। एक कुली की नजर उन पर पड़ी।

- मांजी, कहाँ जा रही हो?
- बेटा, मैं पुत्र के पास दिल्ली जाऊंगा।
- आज कोई ट्रेन नहीं है मांजी।

बुढ़िया की आसहाय दृष्टि, कुली शायद दयालु है।
- चलिए मैं आपको वेटिंग रूम में छोड़ देता हूं।
- चलो बेटा, और क्या करें!

क्या आपका बेटा दिल्ली में रहता है?
- हां बेटा। दिल्ली मैं किया कम करता है।
- रेल पर काम करता है।
- नाम बताओ, देखें की क्या संपर्क संभव है की नहीं।
- वह मेरा लाल है। सब उन्हें लाल बहादुर शास्त्री कहते हैं!

वह उस समय भारतीय रेल के केबिनेट मंत्री थे। एक पल मैं पुरे स्टेशन पर भगदड़ माच गई। जल्द ही सैलून की गाड़ी आ गई। बुढ़िया को आश्चर्य हुआ। उनके बेटे इतनी ताकत!

लालबहादुर को कुछ मालूम नहीं था। सारी ब्यवस्था भारतीय रेलवे ने किया।

अंततः एक बात। ऐसी माँ तो वैसा बेटा नहीं होता? ऐसे नेता आजकल दुर्लभ हैं, वे सत्ता और प्रतिष्ठा के लिए नहीं बैठे, उन्होंने पद को सुसोभित किया।

अपने बेटे से मिलने के बाद उन्होंने बेटे से पूछा, "बेटा, तू रेलमे क्या कम करते हो? एलोग पूछा तो मैंने कुछ बोल नहीं पाया।"

अपने जवाब में बेटे ने कहा, छोटी सी कम आभार।।

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