उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के Athlete Mahadev Prajapati की कहानी।

NMB Only One
0

 उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के Athlete Mahadev Prajapati की कहानी अपमान को जिद में बदलकर सफलता हासिल करने की मिसाल है। महादेव का जीवन तब बदल गया जब 2011 में एक समारोह के दौरान भदोही के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने उन्हें उनकी वेशभूषा के कारण सम्मानित करने से मना कर दिया।

Athlete Mahadev Prajapati won 39 medal for india in 42 age.



धोती-कुर्ता पहने Mahadev Prajapati को देखकर डीएम ने उनसे पूछा कि "खिलाड़ी तुम हो या तुम्हारा बेटा?" इस घटना ने महादेव को गहरे तक प्रभावित किया और उन्होंने 42 साल की उम्र में एथलेटिक्स में वापसी की ठान ली। आज, 50 साल की उम्र में महादेव प्रजापति देश के लिए 39 मेडल जीत चुके हैं।


Mahadev Prajapati ने बताया कि 2011 के उस कार्यक्रम में डीएम ने उन्हें मेडल गले में पहनाने के बजाय हाथ में थमा दिया था, क्योंकि उन्हें लगा था कि महादेव अब खिलाड़ी नहीं रहे। इस अपमान ने महादेव को अपनी फिटनेस पर काम करने और एथलेटिक्स में वापसी के लिए प्रेरित किया। 4 जून 2012 को बेंगलुरु में आयोजित जेवलिन और 100 मीटर रिले रेस में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता।

     Also Read: Para Athlete Preeti Pal Biography in Hindi...

अब तक, Mahadev ने सीनियर इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में 16 गोल्ड, 16 सिल्वर और 7 ब्रॉन्ज मेडल भारत की झोली में डाले हैं। उन्होंने 2013 में श्रीलंका, 2014 में जिया गामा, 2015 में ऑस्ट्रेलिया, 2017 में न्यूजीलैंड और मलेशिया में मास्टर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और कई मेडल जीते।


हाल ही में सिंगापुर में आयोजित मास्टर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उन्होंने जेवलिन थ्रो में गोल्ड और ट्रिपल जम्प में सिल्वर मेडल जीता। अब वे अक्टूबर में इंडोनेशिया में होने वाले मास्टर एशियन गेम्स की तैयारी कर रहे हैं।


Mahadev Prajapati अपनी आजीविका के लिए खेती करते हैं और एक छप्पर के मकान में रहते हैं। खेल प्रतियोगिताओं में उन्हें धनराशि नहीं मिलती, केवल मेडल दिए जाते हैं, इसलिए वे विदेशों में होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए क्राउड फंडिंग का सहारा लेते हैं।


हाल ही में सिंगापुर जाने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आर्थिक मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन उन्हें सरकारी अनुदान नहीं मिला। इसके बावजूद, स्थानीय लोगों और अधिकारियों ने उनकी मदद की, जिससे वे सिंगापुर में होने वाली प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुंचे।


Mahadev ने 1985 में सीआरपीएफ जॉइन की थी, लेकिन 1990 में अपने पिता की तबीयत खराब होने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नौकरी से पहले महादेव ने 1980 में ऑल इंडिया स्कूल बॉयज नेशनल्स, 1981 में इंटर स्टेट चैम्पियनशिप, और 1983 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था।


इसके अलावा, Mahadev Prajapati खेती के साथ-साथ अपनी गायों की देखरेख भी करते हैं। उनकी यह संघर्ष और सफलता की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी साबित करती है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ कोई भी सपना साकार हो सकता है।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)