D Gukesh story,शतरंज की बिसात पर छा गया भारत का सितारा गुकेश

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शराब की जगह गिलास में पानी और माथे पर विभूति तिलक यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि हमारे भारतीय खिलाड़ी Gukesh Dommaraju भारतीय संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं।

Gukesh Dommaraju youngest world chess champion.

सिंगापुर में 2024 World Chess Championship में D Gukesh age 18 मौजूदा चैंपियन डिंग लिरेन को हराकर पूरी दुनिया को चौंका दिया है।


Gukesh ने न केवल इस प्रतिष्ठित खिताब को भारत के नाम किया, बल्कि सबसे कम उम्र के Classical chess world champion बनकर इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कराया है। यह जीत न केवल भारत के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

India star Gukesh Dommaraju dominates world chess champion.

Gukesh के बचपन की कहानी

बेटा चौथी कक्षा में पढ़ रहा था, तभी शिक्षक ने पिता को बताया कि आपका बेटा बहुत बढ़िया शतरंज खेलता है। यदि इसे खेलने दिया जाय तो बहुत आगे जाएगा Gukesh...

पिता बड़े डॉक्टर थे, माता भी डॉक्टर। हमारे समाज में ऐसे दम्पत्ति बच्चे के जन्म के पहले की तय कर देते हैं कि बच्चा डॉक्टर बनेगा। पर उस पिता ने रिस्क लिया, और आज के हिसाब से बहुत बड़ा रिस्क लिया। बच्चे को शतरंज खेलने में ही आनन्द आता था तो उसके जिम्मे केवल शतरंज खेलने का ही काम रहने दिया। मतलब समझ रहे हैं? बच्चे ने चौथी कक्षा के आगे पढ़ाई ही नहीं की है।

आप अपने आसपास दृष्टि दौड़ा कर देखिये, क्या ऐसा कोई पढा लिखा पिता दिखता है जो खेलने के लिए बेटे की पढ़ाई छुड़वा दे? नहीं मिलेगा। क्यों? क्योंकि हमारा लक्ष्य ही है कि बच्चा किसी तरह पढ़ लिख कर कहीं नौकर लग जाय। हम इससे उपर सोच ही नहीं पाते...

हाँ तो पिता ने बच्चे की पढ़ाई छुड़वा दी। बच्चा अच्छा खेल रहा था तो स्कूल के बाहर भी खेलने जाने लगा। अब छोटे बच्चे को अकेले तो कहीं भेज नहीं सकते, सो माता ने भी अपनी नौकरी लगभग छोड़ ही दी। उसके पीछे साये की तरह लगी रहती, उसके भोजन और सुविधा का ध्यान रखती, पसन्द-नापसंद का ध्यान रखती...

2017 में केवल ग्यारह वर्ष के उस बच्चे से किसी पत्रकार ने पूछा, आप आगे क्या करना चाहते हैं? लड़के ने बिना किसी झिझक के कहा था- मुझे सबसे कम आयु का ग्रैंडमास्टर बनना है। मुझे सबसे कम आयु का विश्व चैंपियन बनना है।

कल वह बच्चा सचमुच सबसे कम आयु का विश्वविजेता बन गया है। इस उपलब्धि में Gukesh का प्रतिभा, उसका समर्पण, उसे मिली सुविधाओं की भूमिका तो है ही, बस सबसे बड़ी भूमिका उसके पिता डॉ रजनीकांत के उस रिस्क की है जो उन्होंने उसकी चौथी कक्षा में पढ़ाई छुड़वा कर उठाई थी।

निष्कर्ष

पुराने बूढ़े कहते थे- "लीक छोड़ कर तीन चले, शायर सिंह सपूत..." लीक पर चलने वाले अब भी दाल रोटी की व्यवस्था में लगे रह जाते हैं। राजा वही बनता है, जो रिस्क लेता है। Gukesh D को बहुत बहुत बधाई...

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