मैसूर की रहने वाली ट्रांसजेंडर महिला शबाना और फातिमा की कहानी, संघर्ष और समर्पण की मिसाल है।
शबाना ने फातिमा की परवरिश के लिए समाज की तिरस्कारपूर्ण सोच और अपनी कम आय के बावजूद कभी हार नहीं मानी। जब फातिमा ने मात्र 12 साल की उम्र में किकबॉक्सिंग में रुचि दिखाई, तो शबाना ने हर मुमकिन प्रयास कर उसे ट्रेनिंग दिलाई। सीमित संसाधनों के बावजूद, उन्होंने फातिमा के सपनों को साकार करने का संकल्प लिया।
फातिमा की मेहनत और शबाना के समर्थन ने उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर 23 पदक दिलाए, जिनमें कर्नाटक राज्य किकबॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल भी शामिल है। इस मुकाम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। शबाना ने फातिमा की ट्रेनिंग की फीस से लेकर यात्रा और प्रतियोगिताओं के खर्चों का प्रबंध किया।
शबाना का सपना है कि उनकी बेटी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करे, और इसके लिए उन्होंने समाज और सरकार से भी मदद की अपील की है। वहीं, फातिमा अपनी सफलता का पूरा श्रेय शबाना को देती हैं। उनका कहना है कि उनकी मां ने हर परिस्थिति में उनका साथ दिया और अब उनका एकमात्र सपना है कि वे अपनी मां का नाम और भी ऊंचा कर सकें।